Aalhadini

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The Train... beings death 16

  कमल नारायण ने इंस्पेक्टर कदंब और नीरज  के रोकने के बावजूद दरवाजा खोल दिया और अंदर की हालत देखकर  ही उनकी चीख निकल गई...

"आऽऽऽ...!!"
 और चीखते ही वो जमीन पर गिर पड़े। इंस्पेक्टर कदंब और नीरज उनके एकदम पास खड़े थे इसलिए उनके गिरते ही उन्हें सम्भाल लिया और उसी कमरे में इलाज के लिए ले जाया गया जिस कमरे में उनकी पोती लक्ष्मी को रखा गया था।
कमरे की हालत बहुत ज्यादा ही खराब थी.. सारे कमरे में खून ही खून बिखरा पड़ा था.. साथ ही कुछ खाल और मांस के टुकड़े भी बिखरे हुए थे।  डॉक्टर शीतल, रोहित, कुछ  स्टाफ मेंबर जो कमरे में थे सभी खून से लथपथ सदमे में खड़े थे.. किसी को कुछ भी होश नहीं था। 

किसी को भी पता नहीं चला था कि ये हुआ क्या था? बस सभी मूर्तियाँ बने हुए थे।
तभी खून और मांस के टुकड़ों से बचते बचाते कदंब अंदर आया और डॉक्टर शीतल के कंधे पर हाथ रखा तो शीतल को कुछ होश आया.. और उसने इंस्पेक्टर कदंब का हाथ पकड़ लिया।
"क..क..कदंब...!! द..द..देखो... य..ये स..सब...!" शीतल ने घबराते हुए कहा और कसकर कदंब को गले लगा लिया।इस वक्त शीतल सबसे ज्यादा डरी और सहमी दिखाई दे रही थी। डॉक्टर शीतल ने बेड की तरफ इशारा करते हुए कहा।
डॉक्टर शीतल के इशारा करते ही सभी की नज़रें बेड की तरफ घूम गई। खून से रंगा हुआ बेड.. आसपास रखी टूटी और खून से रंगी मशीन्स, फैले हुए खून से सने तार और बिखरे कांच के टुकड़े जिनका रंग खून की वजह से लाल ही दिखाई दे रहा था। और सबसे बड़ी बात तो जो शीतल दिखाना चाहती थी वो थी उस लड़की लक्ष्मी की हालत।
खुली पथराई आंखें.. सफेद पड़ चुका शरीर.. हाथ और पैर ऐसे लग रहे थे जैसे किसी ने बरसों से बांधकर रखा था, बाल ऐसे खड़े थे.. जैसे बिजली का करंट लग जाने के बाद खड़े हो जाते हैं और सबसे बुरी हालत तो उसके पेट की थी जिसके चिथड़े उड़ चुके थे.. और वही चिथड़े पूरे कमरे में बिखरे हुए थे।
 हालत बहुत ही बुरी थी.. इतनी बुरी कि कोई भी देख ले तो शायद महीनों तक पानी भी ना पी पाए। अंतड़ियो के कुछ टुकड़े आसपास ही पड़े थे। शरीर के कुछ अंग भी इधर उधर ही बिखरे पड़े दिखाई दे रहे थे।
 उस बच्ची लक्ष्मी की ऐसी हालत देखकर कदंब की भी रूह फना हो गई थी। उसने सपने में भी नहीं सोचा था कि वह किसी को इतनी बुरी हालत में देखेगा। भले ही उसकी जॉब पुलिस की थी.. जहां उसे कत्ल किए हुए शरीर, बेरहमी से कटे हुए अंग.. कई बार देखने मिले थे। मगर किसी के भी शरीर की इतनी बुरी दुर्गति उसने अपने पूरे कैरियर में नहीं देखी थी।
 लड़की के दादा कमल नारायण जो पहले ही उस कमरे की हालत देखकर लगभग बेहोशी ही हो गए थे। इस बार तो लक्ष्मी की हालत देखकर उन्हें चक्कर आ गया। उन्होंने वहां कुछ ऐसा देख लिया.. जिसे देखने पर उनकी आंखें फटी की फटी रह गई। उन्होंने एक तरफ अँगुली से इशारा किया और उसी समय उन्हें दिल का दौरा पड़ गया।
 सभी आनन-फानन में वहां के माहौल को छोड़कर कमल नारायण तीमारदारी में लग गए। किसी को भी कमल नारायण के किये इशारे की तरफ ध्यान ही नहीं गया। उन्हें जल्द से जल्द दूसरे रुम में शिफ्ट करके फर्स्ट एड दिया गया। प्रॉपर हॉस्पिटल तो यह था नहीं.. एक फॉरेंसिक लैब थी जहां पर उस बच्ची के लिए ही एक टेम्पररी हॉस्पिटल की तरह एक रूम को बनाया गया था। इसलिए जल्दी से जल्दी फर्स्ट एड देकर कमल नारायण को पास ही के हॉस्पिटल में भर्ती करवाया गया। कमल नारायण के साथ ही उस बच्ची के परिजन भी हॉस्पिटल चले गए।
 कुछ देर के लिए सभी सकते में थे.. एक तरफ लक्ष्मी की ऐसी हालत और दूसरी तरफ उसके दादाजी को पड़ा हुआ दिल का दौरा..!  ऐसा लग रहा था कि कुछ तो था जो उन्हें परेशान कर रहा था और उसी के कारण उन्हें दिल का दौरा पड़ा था। पर इस वक्त इस सब कुछ को छोड़कर किसी और चीज पर ध्यान लगाना जरूरी था और वह थी उस कमरे की हालत।
 पर उससे पहले उन्हें लक्ष्मी के  माता-पिता को भी उसकी हालत और वहां की सच्चाई के बारे में बताना जरूरी था। इसलिए इंस्पेक्टर कदंब ने नीरज को इशारा किया और उसे लक्ष्मी के पैरंट्स को फोन करने के लिए कहा।
 नीरज तुरंत ही कमरे से बाहर चला गया और लक्ष्मी के माता-पिता को फोन करके वहां तुरंत आने के लिए कहा।
 बाकी स्टाफ अभी तक सदमे में ही था क्योंकि इस तरह की वारदात उन्होंने कभी नहीं देखी थी। वह लोग सीरम डिपार्टमेंट के लोग थे.. केवल उन्हें सैंपल्स की जांच ही करनी होती थी। वह कब, कैसे और किन परिस्थितियों में मिलते थे.. इस बारे में ना तो उन्हें जानकारी थी.. ना उन्होंने कभी जानने की कोशिश की थी। उस  समय जो हालात थे.. उन्हें देखकर वह खुद से सपने में भी शायद 4 दिन तक तो काम पर भी वापस नहीं लौटने वाले थे।
 डॉ शीतल ने रोहित को झकझोरते हुए कहा, "रोहित..! संभालो अपने आप को.. और सभी स्टाफ को भी। अपने आपको थोड़ा सा ठीक ठाक करो और इन्हें बाहर लेकर जाओ। और हां..! इस बात का खास ध्यान रखना कि इस कमरे में जो भी कुछ हुआ है.. उसकी जानकारी कमरे के बाहर नहीं जानी चाहिए।" 
 रोहित अभी भी थोड़ा सदमे में था और उसने हकबकाते हुए कहा, "ज.. जी.. जी डॉक्टर..! मैं ध्यान रखूंगा और यह लोग भी इस कमरे और इसके अंदर की बातें बाहर नहीं जाने देंगे।" ऐसा कहकर रोहित ने सभी लोगों को झिंझोड़ा और सभी को उसी रूम से लगे बाथरूम में हाथ मुंह धो कर आने के लिए कहा।
 "आप लोग बाथरूम में जाइए और हाथ मुंह धो कर वापस आइए। तब तक यहां की हालत थोड़ी सुधार दी जाएगी।"
 ऐसा कहकर रोहित ने सभी को हाथ मुंह धोने के लिए भेज दिया। बाथरूम कमरे से ही अटैच्ड़ था.. उस बाथरूम के बाहर थोड़ा सा गलियारा जैसा था तो सभी लोगों ने उस कमरे में रुकने के बजाय उस गलियारे में रुकना पसंद किया।
 सभी लोग एक साथ ही बाथरूम की तरफ चले गए। लगभग 15 मिनट बाद सभी लोग हाथ मुंह धो कर जैसे ही बाहर निकले.. अभी तक वहां की हालत काफी सुधारने की कल्पना कर रहे थे.. पर इस वक्त वहां की हालत और भी बदतर हो गई थी।
 एक विचित्र सा नन्हा जीव इधर उधर चहल कदमी कर रहा था। कभी वह सोफे पर कभी बेड पर, कभी मशीन पर तो कभी किसी के पैरों पर कूद रहा था। यह सब देखते ही एक लड़की जो उसके स्टाफ का हिस्सा थी की जोरदार चीख निकल गई। उस चीख को सुनते ही  वह नन्हा जीव एकदम से चौक गया और कूदकर डॉ शीतल के गोद में चढ़ गया।
उसके एकदम से ऐसे कूदने से डॉक्टर शीतल बहुत ही ज्यादा घबरा गई थी.. और वो नन्हा जीव उसे अपनी माँ समझकर शीतल से चिपका हुआ था। 
पर्पल कलर का वो जीव उसकी लंबाई कुछ एक फुट के आसपास होगी। देखने में बंदर के बच्चे जैसा ही लग रहा था लेकिन शक़्ल कुछ साफ नहीं समझ आ रही थी। आंखें बिना पलकों के थी, नाक की जगह केवल दो कोटर जैसे दिख रहे थे, मुँह के स्थान पर केवल एक खाली जगह थी.. जब वो मुँह खोल रहा था तब मुँह में दांतों की कतारें ही दिख रही थी.. जैसे दांतों का गार्डन ही लगा हो। उसके सर पर पास पास दो सींग भी थे जो पारदर्शी झिल्ली से जुड़े हुए थे.. किसी एंटीना जैसे थे.. जो शायद एक दूसरे को मैसेजेज् भेजने के काम आते होंगे। शरीर पर खाल तो थी ही नहीं... बस एक आवरण जैसा था जिससे शरीर के सारे अंग ठीक से एक ही जगह रहे.. बाहर इधर-उधर ना बिखरे... वो आवरण जिसे हम त्वचा बोल सकते थे वो बिल्कुल पारदर्शी थी। जिससे साफ साफ दिखाई दे रही थी... उसके शरीर की बनावट, उसके अंदरूनी अंग, नसें और उसके शरीर में बहने वाला हल्का पर्पल खून। कोई जीव इतना विचित्र कैसे हो सकता था.. सभी स्टाफ के लोग उसे देखकर हैरान और डरे हुए लग रहे थे।
डॉक्टर शीतल की हालत की तो कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। एक तो इतना विलक्षण जीव उसकी गोद में था और तो और वह उसे अपने हाथों से शीतल के चेहरे को छू रहा था। उसके हाथ बिल्कुल इंसानों जैसे ही थे बस एक पारदर्शी झिल्ली से अंगुलियाँ जुड़ी हुई थी। शायद उसकी मानवों से समानता उसकी माँ लक्ष्मी के कारण ही रही होगी। भले ही वह उस अनजान जीव की सन्तान थी..पर कुछ अंश मानवों जैसे भी थे।
इस नन्हें जीव के बायलोजिकल फादर को तो अभी तक कोई भी व्यक्ति देख ही नहीं पाया था। यहां भी वह दो बार आया था परंतु आकार लेने से पहले ही किसी ना किसी वज़ह से वह आकार  नहीं ले पाया और कोई भी उसे देख ही नहीं पाया था। 
लड़की की चीख से वो नन्हा जीव भी डर गया था.. और उसके चिपकने से डॉक्टर शीतल भी।
"अच्छा ही हुआ..! इन्हें ही एक्सपेरिमेंट करना था ना ताकि बच्चा जल्द आ जाए और उसपर रिसर्च की जा सके। अब कर लीजिए मैडम रिसर्च.. आप ही की गोद में है।" कहकर एक लड़की ने टोंट मारा।
यहाँ सभी डॉक्टर शीतल से थोड़े से नाराज़ हो रहे थे। उन्हे अब अपनी जान पर संकट मंडराता नज़र आ रहा था।
थोड़ी देर बाद भी वो जीव शांत ही था.. जैसे कुछ हुआ ही नहीं था। सभी को अब लगने लगा था कि हो सकता है डॉक्टर शीतल ने जो कुछ भी किया इस टाइम वहीं उचित था.. इसलिए सभी के मन का मैल मिट गया था।
उस नन्हें जीव के बायलोजिकल फादर की डीएनए रिपोर्ट आने में अभी समय था तो थोड़ा सा ट्रिक का यूज़ करते हुए शीतल ने बच्चे का भी सैम्पल लेने का सोच लिया।
अभी भी वह नन्हा शरारती जीव शीतल की गोद में ही था। जब शीतल के दिमाग में उसका भी डीएनए परीक्षण करने का आईडिया आया तो उसने सभी पाॅसिबिलीटीज् पर विचार किया और सबसे आसान तरीका उसका खून ही लगा। क्योंकि बाल उसकी बॉडी पर थे नहीं और उसका सलाइवा लेने की सोचना भी बेवकूफी होती.. अब जिसके मुँह में दांतों का जंगल हो उसके मुँह से सलाइवा लेने की सोचना भी आत्महत्या करने जैसा ही होता ना।
डॉक्टर शीतल उस नन्हे जीव को प्यार से सहलाने लगी। थोड़ी देर सहलाने के बाद शीतल ने अपने ब्रेसलेट को थोड़ा सा खींच दिया जिससे वो थोड़ा सा चौड़ा हो गया और चुभने वाली हालत में आ गया था। जब शीतल उस बच्चे को सहला रही थी तब वो नन्हा बच्चा थोड़ा सा  कसमसाया जिससे उसे ब्रेसलेट चुभ गया और खून बहने लगा।
खून बहने से उस नन्हे बच्चे को दर्द हुआ और वो इधर उधर हिलने की कोशिश करने लगा। तब शीतल ने उसे कस कर पकड़ा और रोहित ने जल्दी से दवाई लगाकर पट्टी बाँध दी। जब रोहित पट्टी बाँध रहा था उसी टाइम  डॉक्टर शीतल के इशारे पर एक स्टाफ ने तुरंत ही उस ब्लड सैम्पल को उठा लिया और रूम से बाहर निकल गई। वो लड़की जिसने अभी ब्लड का सैम्पल लिया था उसे तुरंत ही उसी जगह ले गई जहां पर पहले वाला सैम्पल ले जाया गया था। वहीं इन दोनों सैम्पल्स का कम्पेरिजन कर के उसपर रिसर्च और उनके बीच की सिमीलरटीज् और डिफ्रेंस पर रिसर्च करने वाले थे।
पट्टी बांधने के बाद वो नन्हा जीव धीरे-धीरे शांत हो गया था.. पर उसके व्यवहार में अलग सी बेचैनी दिखाई दे रही थी। उसकी नज़रे यहाँ वहाँ कुछ ढूंढती प्रतीत हो रही थी।
डॉक्टर शीतल  ने उसे कुछ ढूंढते देखा तो वो फौरन समझ गई थी कि शायद उसे भूख लगी थी। कदंब और नीरज काफी देर से शांति से खड़े उस पूरे घटनाक्रम को देख रहे थे। शीतल की नज़र कदंब पर पड़ी तो उसने इशारे से दोनों को अपने पास बुलाया।
"इंस्पेक्टर..!! मुझे अब आप लोगों की हेल्प चाहिए। आप नीरज से इसके लिए दूध का इंतजाम करवाए और आप रोहित की हेल्प कर दीजिए.. ताकि इस नन्हें बच्चे को किसी सेफ हाउस में रखा जा सके। इसके बायलोजिकल फादर को शायद अब तक इसके आने का अंदाजा हो गया होगा और अगर ना भी हुआ होगा तो भी जल्दी ही वो यहाँ इसे (लक्ष्मी की तरफ इशारा करते हुए) देखने और अपने बच्चे की सुरक्षा सुनिश्चित करने वापस आएगा। और जब उसे लक्ष्मी की मौत और इसके जन्म के बारे में जानकारी होगी तब वो कुछ भी कर सकता है। उससे पहले हमें इसे किसी सेफ हाउस में पहुंचाना होगा।" डॉक्टर शीतल ने अपना आगे का प्लान बताते हुए कहा।
"वो तो ठीक है.. पर उसके आगे क्या..?" कदंब ने सवाल किया। क्योंकि अब वो भी जानना चाहता था कि आगे शीतल का प्लान क्या था।
"आपने इतनी देर मेरा सपोर्ट किया.. बस कुछ देर और कर दीजिए। इसे एक बार सेफ हाउस पहुँचा दे.. उसके बाद हर एक बात आपको क्लियर कर दूंगी। तब तक प्लीज थोड़ा सा और सपोर्ट कर दीजिए।" डॉक्टर शीतल ने कदंब की आँखों में देखते हुए रिक्वेस्ट की।
"ओके..! बस थोड़ी देर और..! उसके बाद आपको सब कुछ साफ़ साफ बताना होगा। इस सबके कारण मैं शहर में किसी भी तरह की कोई दुर्घटना नहीं चाहता।" कदंब ने थोड़ा सख्त लहजे में कहा और रोहित के साथ बाहर निकल गया। नीरज भी पीछे पीछे ही बाहर चला गया।
दूध शीतल को देकर नीरज कमल नारायण को देखने के लिए हॉस्पिटल गया। 

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कमल नारायण को एक प्राइवेट वार्ड में एडमिट करवाया गया था.. जो सुविधाओं में किसी पांच सितारा होटल को भी मात दे रहा था। नीरज ने जाकर रिसेप्शनिस्ट से पूछा, "एक्सक्यूज मी..! क्या आप बता सकती हैं के मिस्टर कमल नारायण किस रूम में एडमिट हैं..?"
"फर्स्ट फ्लोर.. रूम नंबर 17..!" 
"थैंक्स..!" बोलकर नीरज उस रूम की तरफ चल दिया। सीढ़ियों से चलकर फर्स्ट फ्लोर पहुंचने पर उसने देखा तो लेफ्ट हाथ की तरफ बिल्कुल सामने ही वो प्राइवेट वार्ड था.. रूम नंबर 17। जैसे ही नीरज ने रूम में जाने के लिए दरवाज़ा खोला.. उसी वक्त उसे कुछ शब्द कानो में पड़े।
"ये सब मेरी ही वजह से हुआ है.. मुझे उन सब का साथ ही नहीं देना चाहिए था। मुझे नहीं पता था कि इतने बरसों के बाद भी वो यहां आकर ये सब कर सकते हैं।"
ये सुनते ही नीरज एकदम से शाॅक्ड हो गया। 
"ये सब क्या है..? किसकी वजह से ये सब हुआ और क्या मतलब है इस सबका..? कौन है ये जिसे इन सभी होने वाली घटनाओं के बारे में जानकारी है?"  नीरज दरवाज़े पर ही खड़ा हुआ हैरान परेशान सा सोच में डूबा हुआ था।

क्रमशः.....

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7 Comments

Abhinav ji

05-Apr-2022 09:33 AM

Nice

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Punam verma

26-Mar-2022 06:44 PM

Very nice part aap to kamal ke lekhak hain

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Ramsewak gupta

11-Oct-2021 08:59 PM

बेहतरीन पोस्ट है आपकी धन्यवाद जी

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